कितनी बार हम मिलके बिछड़े
ये उन दिनों की बात है जब मैंने नया-नया कंप्यूटर सेंटर में एक "टैली" के शिक्षक के तौर पर पढ़ाना शुरू किया था। एक शिक्षक के तौर पर मेरा समय बहुत अच्छा बीत रहा था। मैं एक कड़क मिज़ाज़ और अपने काम से काम रखने वाला शिक्षक था परन्तु पढ़ाते वक़्त मेरा व्यवहार विद्यार्थियों के साथ एक दोस्त की तरह था ताकि वह निःसंकोच मुझसे कुछ भी पूछ सकें। बच्चों के साथ दोस्तों वाला व्यवहार होने की वजह से वह बच्चे मेरा काफी सम्मान करते थे। उस वक़्त मेरी उम्र 20 वर्ष की थी जिस वजह से कोई भी बच्चा मुझसे किसी भी तरह की बात और अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के बारे में साझा करने से झिझकता नहीं था और मैं भी उन्हें एक अच्छे मित्र की तरह सलाह देता था। मेरे बेच में अधिकांश लड़कियाँ ही थी और उनसे मेरा अच्छा व्यवहार होने के कारण वह सभी मेरी बहुत इज़्ज़त किया करती थी। इसी तरह कब धीरे-धीरे दो साल बीत गए कुछ पता ही ना चला। ये जनवरी के लगभग की बात है उन दिनों एक लड़की ने सुबह के बेच में ए.डी.सी.ए.(एक वर्ष का कंप्यूटर कोर्स) में प्रवेश लिया था। क्योंकि मैं कंप्यूटर सेंटर में सिर्फ "टैली" विषय पढ़ाता था तो मैंने उस लड़की की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
उसे क्लास में आते हुए लगभग तीन दिन हो गए थे। चौथे दिन की सुबह की बात है मेरे बेच के बच्चे उस दिन क्लास में नहीं आये थे और उस कंप्यूटर सेंटर के मालिक और मेरे बॉस किसी काम से कुछ समय के लिए बहार चले गए। मैं अपनी डेक्स पर बैठ कर बच्चों का टेस्ट पेपर तैयार करने लग गया। वह लड़की आई और अपनी सीट पर जा कर बैठ गई और कंप्यूटर चालू करके अपनी प्रैक्टिस करने लग गई। उस समय वह और मैं हम दोनों ही क्लास में अकेले थे। उस समय के और भी बच्चे आने वाले थे पर आज शायद वह थोड़ा लेट थे। मैं अपने काम में व्यस्त था तभी पानी पीते वक़्त मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी। वह कंप्यूटर पर कुछ भी कर रही थी शायद उसे कंप्यूटर चलाना नहीं आ रहा था। मैं काफी देर से उसी ये हरकत देख रहा था। मुझसे रहा ना गया और मैंने उसके पास जा कर पूछा तुम क्या करना चाहती हो मतलब तुम्हें सर ने कंप्यूटर में क्या-क्या सिखाया है?
उसने मेरी तरफ देखकर जबाब दिया - सर! मुझे सर ने कंप्यूटर पर फोल्डर बनाना, उसका नाम बदलना, उसे कट कॉपी पेस्ट करना व वॉलपेपर बदलना सिखाया है। जो मुझे नहीं आ रहा है।
मैंने उससे कहा बताओ माउस मैं तुम्हें बताता हूँ और मैंने उसे वो सब बताया जो उसे सर ने सिखाया था जो वो उस वक़्त कर नहीं पा रही थी। फिर उसने मुझसे मेरा नाम पूछा तो मैंने उसे अपना नाम बताया फिर मैंने उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम प्रिया द्विवेदी बताया उसने कहा कि मैं एक ब्राह्मण हूँ और अस्पताल में नर्स की नाईट ड्यूटी करती हूँ और नाईट शिफ़्ट ख़त्म करके सीधा यहाँ आती हूँ।
पहली ही मुलाकात में उसने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर ले लिया और अब वह मुझे कॉल कर के क्लास में आने लगी। अगर मैं आता तो वह क्लास में आती और मैं अगर छुट्टी पर होऊँ तो वह भी नहीं आती। मैं काफी दिनों से उसका यह व्यवहार देख रहा था। एक दिन मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे पूछ लिया तुम सर से क्यों नहीं पढ़ती हो? जबकि मैं यहाँ पर टैली पढ़ाता हूँ, तुम्हारी सारी फीस तो वह रखेंगे मुझे तुम्हारे हिस्से की कोई फीस नहीं मिलेगी।
उसने मासूम निगाहों से मुझे देखा और बोली कि जब मैं पहली बार क्लास में आई थी तो सर मुझे कंप्यूटर चला बता रहे थे, उस वक़्त मेरा हाथ माउस पर रखा था, तो उन्होंने मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया और कंप्यूटर चलाना बताने लगे जो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। जबकि उस दिन जब आपने मुझे बताया तो माउस को मुझसे अपने हाथों में ले लिया और मुझे सारा कुछ बता कर मुझसे दूर खड़े हो गए। मुझे आपकी ये आदत काफी अच्छी लगी और ये मैं समझ गई के आप एक बहुत अच्छे इंसान हैं। बस यही कारण है कि मैं उनसे नहीं पढ़ना चाहती और इसलिए ही मैंने आपसे आपका नम्बर लिया था। इसलिए ही जब आप आते हो तो मैं आती हूँ और आप जब नहीं आते हो तो मैं नहीं आती हूँ।
धीरे-धीरे प्रिया मुझसे काफ़ी घुल मिल गई थी और उसका साथ मुझे भी अच्छा लगने लगा था। अब हमारी रात रात भर बातें होने लगीं क्योंकि वह रात ड्यूटी करती थी तो उसको रात में जागना होता था। वह वक़्त बेवक़्त मुझे फ़ोन लगा देती और हम ढ़ेरों बाते किया करते। हमारी बढ़ती नजदीकियों को देख कर हमारे कोचिंग वाले सर को काफी खुन्नस खा रहे थे पर वह कुछ कह नहीं पा रहे थे। उन सर का स्वभाव एक ठरकी किस्म का था वह हर विवाहित व अविवाहित स्री/लडक़ी को गंदी नज़र से देखा करते थे जिस वजह से कोई भी लड़की ना उनकी इज़्ज़त करती थी ना ही उनसे ज्यादा बात करती थी उनकी शादी हो चुकी थी और वह दो लड़कियों के पिता थे। एक दिन सर ने प्रिया के भाई को हमारी दोस्ती के बारे में बता दिया।
एक दिन जब क्लास में कोई नहीं था तो उसका भाई क्लास में आ गया और मुझे काफी भला बुरा कहने लगा। तो मैंने भी उसे काफी कुछ सुना दिया कहा तेरी बहन कोई हूर की परी नहीं है, तेरी बहन से ज्यादा खूबसूरत लड़कियां मुझसे पढ़ती हैं, इतनी तक़लीफ़ है तो ले जा तेरी बहन को यहाँ से!!! उस दिन से वह मुझसे इज़्ज़त से बात करने लगा और उसने बताया कि सर ने आप दोनों के रिश्ते के बारे में मुझे बताया और भड़काया था।
उससे इन बढ़ती नजदीकियों से मुझे यह एहसास हो गया कि मुझे उससे प्यार हो गया है। जुलाई का महीना था मुझे पता चला कि अक्टूबर में उसका जन्मदिन है। मैंने यही दिन सोचा उससे अपने प्यार का इज़हार करने का। धीरे-धीरे अक्टूबर आ गया उसके जन्मदिन से एक रात पहले हम दोनों ने उसके अस्पताल के नीचे मिलने और केक काटने का प्लान बनाया। मैंने उसके लिए एक गिफ़्ट खरीदा और उसके अस्पताल के नीचे खड़ा हो कर उसका इंतजार करने लगा। शायद अपने प्यार के इज़हार की जल्दी में मैं समय से पहले ही वहां पहुँच गया था।
उसका इंतजार करते करते तीस मिनट से ज्यादा हो गया था पर वह अब तक आई नहीं थी। मैंने उसको फ़ोन लगाया पर उसने मेरा फ़ोन नहीं उठाया मैं बार-बार उसको फ़ोन लगा रहा था पर वह फ़ोन नहीं उठा रही थी। क़रीब बीस मिनट बाद उसने मेरा फ़ोन उठाया। वह कॉल उसके भाई ने रिसीव किया था उसने मुझे काफी भला-बुरा कहा और उससे कभी ना बात करने की सलाह दी। पीछे से प्रिया की रोने की आवाज़ आ रही थी शायद उसके भाई ने उसे मारा था। वो शायद मेसेज डिलीट करना भूल गई थी और दिन में ही उसके भाई ने वो सारे मेसेज पढ़ लिए थे। जिस वजह से वह उस दिन अस्पताल नहीं आई थी। उसके बाद वह कभी मुझे नहीं मिली ना कभी कोचिंग आई ना कभी उसका फ़ोन लगा ना ही उसने मुझे किसी तरह से संपर्क करने की कोशिश की।
उसके जाने के बाद मेरा भी मन उस कंप्यूटर सेंटर में नहीं लग रहा था। मानो जैसे जीवन के सारे रंग ही रूठ गए हों या जैसे बहारों के मौसम में अचानक खिज़ा का मौसम आ गया हो। फिर एक रोज मुझे एक जॉब का ऑफर आया उसके बाद मैंने भी वो कंप्यूटर सेंटर छोड़ दिया और जॉब का ऑफर स्वीकार कर लिया क्योंकि पुराने सर से मेरे संबंध अच्छे थे और पहली जॉब की शुरुआत उनके पास पढ़ा कर की थी इसलिए उनके इंस्टीट्यूट में शाम को पढ़ाने लगा। जॉब का ऑफर स्वीकार करने का एक और कारण ये भी था कि वो ऑफिस उसके घर के पास ही था। मैं रोज आते जाते वक़्त या सर के ऑफिस में ना होने पर रोड़ की तरफ़ देखता रहता कि शायद वो नज़र आ जाए। क़रीब एक साल बीत गया था प्रिया को ना देखे हुए ना ही उसकी कोई ख़बर थी मेरे पास। वक़्त इतनी जल्दी बीता की पता ही ना चला कि कब दो वर्ष हो गए मुझे वहां अकाउंटेंट के तौर पर काम करते हुए। एक दिन शाम की बात है ऑफिस से मेरी छुट्टी जल्दी हो गई थी और घर जाते वक़्त मुझे प्रिया अचानक से रोड़ पर उसके घर की तरफ जाते हुए दिख गई मैंने उसको देख अपनी गाड़ी रोकी मुझे देख वो भी रूक गई। मुझे अचानक देख उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। मेरे दिल मैं आया कि उसको सीने से लगा लूँ पर रोड़ पर होने की वजह से मैंने खुद पर काबू रखा। हम दोनों ने एक दूसरे का हाल पूछा उसने बताया कि वह रिलायंस के ऑफिस में कालिंग का काम कर रही है और अपनी आगे की पढ़ाई कर रही है। हमनें एक दूसरे से काफी बातें की और अपने नंबर भी एक दूसरे को दिए। जैसे पुराने दिन फिर लौट आए हों एक बार फिर हमारी रात रात भर बातें होने लगी।
इस बार मैंने किसी ख़ास मौके का इंतजार नहीं किया और उससे अपने प्यार का इज़हार कर दिया। लेकिन उसने मेरे प्यार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया उसने कहा कि उसका पहले से ही एक बॉयफ्रेंड है और उसका नाम प्रभाकर है वह दोनों बचपन से एक दूसरे को पसंद करते है। मैंने भी उसकी बात का सम्मान किया और कहा कि मेरे दिल में जो बात थी वो मैंने तुमसे कह दी और हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे। मेरा दिल एक बार फिर टूट गया फ़र्क बस इतना था कि उसे मेरा हाल-ए-दिल पता था। एक अच्छे दोस्त के तौर पर हमारी बातें होती रहीं फिर हमारी बातें होना धीरे-धीरे कम हो गयीं और फिर एक तरह से बातें होना ही ख़त्म हो गई। चार महीने बीत चुके थे प्रिया से बातें हुए। चार महीने बाद एक दिन प्रिया का अचानक सुबह नो बजे फोन आया उसने बताया कि उसके बॉयफ्रेंड की शादी हो गई है वह बहुत रो रही थी मैं उसे फोन पे ही चुप कराने की कोशिश कर रहा था उस रोज़ हमनें क़रीब दस घण्टे फोन पर बात की। प्रिया के बॉयफ्रेंड की शादी के बाद उसका अधिकांश समय मुझसे बात कर के बीतने लगा। मैं उसको आस-पास कहीं घुमाने ले जाता उसको खुश रखने की पूरी कोशिश करता।
एक दिन मौका देखकर मैंने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। इस बार उसने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर हाँ कहा और कहा कि वह अपने घर वालों से इस बारे में बात करेगी। कुछ दिन बाद उसने घरवालो से हमारे बारे में बात की और मेरी फ़ोटो उनको दिखाई। फोटो देख कर उन्होंने मुझे पसंद कर लिया पर जब उन्हें पता चला कि मैं दूसरी कास्ट से हूँ तो उन्होंने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया। मैंने उसे घर से भाग कर शादी करने की सलाह दी पर उसने इंकार कर दिया कहा कि शादी करूँगी तो अपने घरवालों की मर्ज़ी से करूँगी। वह भी अपनी जगह सही थी क्योंकि वह अपने घर की बड़ी लड़की थी और यह भी था कि चार के प्यार के लिए माँ बाप को छोड़ देना अच्छी बात नहीं। प्रिया ने घरवालों को मनाने की बहुत कोशिश की परंतु वह नहीं माने और अपनी ज़िद्द पर अड़े रहे। एक दिन गुस्से में आ कर उसके घरवालों ने उसका फोन तोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए महाराष्ट्र (मुम्बई) भेज दिया। उसके बाद से ना उससे मेरी कभी बात हुई ना उसका कभी फ़ोन आया। वो कहाँ है कैसी है कुछ पता नहीं। किस्मत ने हमें कई बार मिलाया और कई बार हम बिछड़े पर अब की बार ऐसे बिछड़े की कभी मिले ही नहीं।
मेरे हिसाब से प्यार का मतलब एक दूसरे को पाना नहीं
बल्कि एक ना होकर भी एक दूसरे को चाहना प्यार है।
लब खामोश और आंखों में पानी है।
ये कोई मनघडंत नहीं मेरी कहानी है।।
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तुम्हें लफ़्ज़ों में क्या बताऊँ, मुझ पर क्या बीती है।
उसका पता नहीं, वो अब भी मुझमें कहीं जीती है।।
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बात उसकी थी, तो मैंने बात रखली।
उसने घर की मैंने उसकी लाज रखली।।
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स्वरचित : निखिल घावरे "निक्क सिंह निखिल"
भोपाल (मध्यप्रदेश)
संपर्क : sceibhopal@gmail.com
Shnaya
23-Jun-2023 11:37 PM
V nice
Reply
nikksinghnikhil
28-Jun-2023 09:56 PM
Thank you
Reply
Varsha_Upadhyay
23-Jun-2023 03:01 PM
बहुत खूब
Reply
nikksinghnikhil
28-Jun-2023 09:56 PM
जी शुक्रिया
Reply
Punam verma
21-Jun-2023 07:58 AM
Very nice
Reply
nikksinghnikhil
21-Jun-2023 09:00 AM
Thanks
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